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Tuesday, December 17, 2013

क्या ईश्वर लालची है ...!

      क्या ईश्वर लालची है ! यह प्रश्न मेरे मन में अक्सर उठता रहता है।  जब मैं यह देखती -सुनती हूँ कि किसी ने अपनी मन्नत पूरी होने पर भगवान को बहुत सारा चढ़ावा चढ़ाया है या कोई कीमती वस्तु भेंट की  है। तो प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है ! जब ईश्वर से ही माँगना होता है तो उसे भेंट स्वरुप कोई वस्तु क्यूँ दी जाय।  क्या वह लालच में आ कर किसी  मन्नत पूरी करता है ? मुझे तो ऐसा लगता है कि  ईश्वर  प्रेम के वशीभूत हो कर ही इंसान की  पुकार सुनता है।
       मुझे याद है जब मेरा बड़ा बेटा अंशुमान  आठवीं कक्षा में था। जिस दिन उसका गणित की  परीक्षा थी। परीक्षा के बाद मेरे पास आया कि उसे रूपये चाहिए। वह ' बाला जी धाम '( हमारे शहर का प्रसिद्ध हनुमान जी का मंदिर ) में  प्रसाद चढ़ा कर आएगा। क्यूंकि उसने हनुमान जी से मन्नत मांगी थी कि पेपर अच्छा होने पर वह उनको प्रसाद चढ़ायेगा।  मैंने रूपये तो दिए क्यूंकि मन्नत जो मांगी थी। साथ ही समझाया भी कि ऐसे तो भगवान को रिश्वत देना ठीक नहीं है। अगर आपको श्रद्धा है तो भगवान से कहो कि मैं आपके मंदिर  धन्यवाद करने पैदल आऊंगा। मेहनत करने वालों का साथ भगवान् देते ही  हैं। वह समझ गया।
     लेकिन मेरे मन का प्रश्न तो ज्यों का त्यों ही है।एक तरफ तो  मंदिरों में लाखों -करोड़ों की भेंट चढ़ाते भक्त गण और वही दूसरी और मंदिर के बाहर एक -एक सिक्के के लिए तरसती -झपटती दीन -हीन लोगों की  भीड़  । तो क्या सच में ही ईश्वर प्रसन्न होता है यह सब देख कर।
    मेरे विचार से अगर अगर मन्नत का स्वरुप बदल दिया जाय। जैसे कोई साधन संपन्न मन्नत मांगने के बदले किसी मज़बूर कि कन्या का विवाह में सहायता कर दे , किसी मज़बूर के घर बनाने में सहायता करे या किसी भी जरूरत मंद की सहायता जैसे शिक्षा आदि में, और भी बहुत सारी सहायता हो सकती है। मुझे लगता है ऐसे में ईश्वर अधिक प्रसन्न होकर जल्दी मन्नत पूरी करेगा।


     जो कम समर्थ हो वह एक गुल्लक बना ले। जब भी मन्नत पूरी हो , कुछ रूपये उसमे डाल दे। एक साल बाद किसी जरूरतमंद को दे दें। मैं तो ऐसे ही करती हूँ। जब  मन्नत मांगनी होती है तो 21सुन्दरकाण्ड या 21दुर्गा सप्तशती के पाठ या 108 हनुमान चालीसा या 108 शिव चालीसा के पाठ बोलती हूँ।  फिर जितने पाठ करती जाती हूँ उतनी ही कुछ धन राशि  गुल्लक में डालती जाती हूँ। वर्ष के अंत में किसी भी जरुरी व्यक्ति को दे देती हूँ। जब हम  भगवान से मांगते  हैं तो थोड़ा कष्ट हमें  भी तो उठाना चाहिए। 
      अंशुमान के जज बनने की मन्नत मैने मांगी थी कि जज बन जायेगा तो एक बच्चे की स्कूल की फीस भर दिया करूँगी और अब ऐसा करती भी हूँ.
 ऐसा करने पर  ईश्वर बहुत अधिक प्रसन्न होगा। वह कतई लालची नहीं है। आखिर नेकी और भलाई का फल तो मिलता ही है। 

Saturday, October 5, 2013

कुछ आसान और जरुरी बातें ( 2 )

     
बहुत सारी ऐसी बातें है जो हम जानते नहीं है या जान बूझ  कर  नजर अंदाज़ कर देते हैं।  जैसे , अक्सर हम लोग हमारे मोबाईल फोन में कॉलर ट्यून या हेलो ट्यून कोई भी मन्त्र की लगा लेते हैं जोकि सर्वथा अनुचित है। क्यूंकि हर मन्त्र का अपना प्रभाव होता है। अपनी अलग ही तरंगे होती है। जब भी कभी   कोई फोन करता है और घंटी की जगह मन्त्र उच्चारित होने लगता है। कई बार फोन जल्दी ही उठा लिया जाता है और मन्त्र आधा ही रह जाता है। यह आधा मन्त्र दोष दायक हो सकता है। आज कल फोन हर जगह ले जाया जाता है। बाथरूम में भी। अब सोचने वाली बात यह है  क्या वह जगह मन्त्र के लिए उपयुक्त है।
          हम अपने इष्ट देव की तस्वीर का भी कवर फोटो फ़ोन पर लगा देते हैं। मोबाइल फोन है कहीं भी कभी आ सकता है। हम झट से उठा लेते हैं। डाइनिंग टेबल हो या बाथरूम। मुझे नहीं लगता कि हमें अशुद्ध हाथों से ईश्वर की तस्वीर छूनी चाहिए।
        हम लोग घरों में भी जगह -जगह अपने  इष्ट की तस्वीरें टांग देते है। यह  तो सभी जानते हैं कि  ईश्वर की तस्वीर शयनकक्ष में नहीं होनी चाहिए। लेकिन हम शयन कक्ष के अलावा भी  अन्य कमरों में रसोई  आदि में ईश्वर की तस्वीरे लगा देते हैं। बेशक ये हमारी धार्मिक प्रवृत्ति दर्शाती है। लेकिन ये उचित नहीं है। घर में हर वस्तु का एक नियत स्थान होता है। फिर भगवान् को इधर -उधर अपमानित क्यूँ किया जाय।
         बैठक हो या भोजन कक्ष , जहाँ पर परिवार हंसती खुशनुमा तस्वीर होनी चाहिए वहां ईश्वर को उपेक्षित क्यूँ किया जाय। बैठक में हर तरह के लोग मिलने आ सकते है। आज -कल उनके स्वागत के लिए विभिन्न प्रकार के 'पेय 'पदार्थ भी दिए जाते हैं। या छोटी -बड़ी पार्टियाँ भी की जाती है वहां भगवान का क्या काम। ऐसे तो घर में नकारात्मकता ही बढती है। रसोई में अगर चित्र लगाना हो तो अन्नपूर्णा देवी का लगाया जा सकता है। वह भी इस शर्त पर वहां मांसाहार न पकाया जाता हो।
      ईश्वर के लिए घर में  जहाँ स्थान  होता है। वहीँ होना चाहिए। सुबह शाम धूप -दीप किया जाना चाहिए।  घंटी बजा कर आरती करनी चाहिए। अक्सर लोग घरों में पत्थर के बने मंदिर भी रहने लगे हैं। यह भी गलत है। मूर्तियों की स्थापना भी करते हैं। घर अगर घर बना रहे तो ही अच्छा है  ,मूर्तियों के लिए देवालय बने हैं। क्यूंकि घर में ख़ुशी -गम ,रोग -मातम आदि होते ही रहते हैं।
 
       अक्सर देखने में यह भी आता है कि कई घरों में दिवगंत पूर्वजों की तस्वीरे भी लगा दी जाती है। मेरे विचार से यह उचित नहीं है। जो चले गए हैं वो हमारे मन में तो बसे ही होते है। उनकी तस्वीरें देख कर मन पर और भी बोझ सा पड़ता है। इस तरह से घर में नकारात्मकता ही बढती है।
    ऐसे बहुत सारी  बातें और भी है जिन पर हम दृष्टि डाल  कर भी अनदेख  कर देते हैं।

ॐ शांति ...

( चित्र गूगल से साभार )

Wednesday, October 2, 2013

नवरात्रि यानि शक्ति पर्व


 नवरात्रि यानि शक्ति पर्व। मौसम अब बदलने लगा है तो शरीर में भी आन्तरिक परिवर्तन होते है। नौ दिन के व्रत या उपवास से शरीर को नयी उर्जा प्रदान हो जाती है।
  इस वर्ष 2013 के शारदीय नवरात्रे 5 अक्टूबर दिन शनिवार, आश्विन  शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगें।
इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं।   नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और  सरस्वती  तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।

घट स्थापना  05 अक्टूबर 2013, शनिवार (अश्विन शुक्ल प्रतिपदा) को श्रेष्ठ समय सुबह 08 बजकर 05 मिनट से प्रातः 09 बजे तक रहेगा।
इसके  बाद  दोपहर 12 बजकर 03 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक बीच करना शुभ है।
 स्थिर लग्न वृश्चिक में प्रातः 09 बजकर 35 मिनट से सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक भी घट स्थापना की जा सकती है।
माँ दुर्गा  की मूर्ति  या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र  के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली चावल  धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।
व्रत करने वाले को लाल वस्त्र और लाल आसन पर बैठना चाहिए। मुख पूर्व या उत्तर की तरफ होना चाहिए।

     नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को  सुबह  से शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए।
     सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
    यह स्थापना स्वयं  या योग्य ब्राह्मण से करवाई जा सकती है।  एक साफ मिटटी के बर्तन में जौ बोये  जाते हैं। मिटटी के बीच में कलश की स्थापना की जाती है। इसके बाद दुर्गा माँ की  तस्वीर या मूर्ति की स्थापना की जाती है। लाल चुनरी अर्पित करके। धूप -दीप , नारियल  और नेवेध्य चढ़ा कर प्रतिदिन शप्तशती का पाठ करना चाहिए। पाठ के बाद सिद्धि -कुंजिका का पाठ भी विशेष फलदाई   है। सुन्दर काण्ड का पाठ भी किया जा सकता है।

नवरात्री में नित्य करने के नियम --
 १). अखंड ज्योति जलाये।
२). दीपक के नीचे चावल रखें।
३). शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखे  ना केवल शारीरिक ही बल्कि मानसिक पवित्रता भी बनाये रखें।  झूठ ,कपट , छल और परनिंदा से भी बचें। ब्रह्मचर्य का पालन भी आवश्यक है।
४). देवी माँ दिखावे से नहीं भक्ति से प्रसन्न होती है।
५). देवी की पूजा के बाद दूध पीने से पूजा का फल शीघ्र मिलता है।
६). " ॐ एम् ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे " , गायत्री मन्त्र का मानसिक जप भी फलदायक होता है।

       नवरात्री के अंतिम दिन कन्याओं का पूजन - भोजन करवा कर उन्हें यथा शक्ति उपहार और दक्षिणा भी दीजिये।
           मेरे विचार में यह व्रत -पूजन सिर्फ उनको ही करना चाहिए या इस व्रत के करने के वे ही अधिकारी है जिन्होंने कभी कन्या भ्रूण हत्या ना की हों। जो  भी यह  व्रत करें वे एक बार अपने दिल पर हाथ रख कर सोचे कि क्या वे सच में ये व्रत करे या कन्याओं का पूजन करें। क्यूंकि  हम कन्यायें तो चाहते है लेकिन सिर्फ दूसरों के यहाँ ही।    अंत में नवरात्रों की शुभकामनाये देते हुए मैं यही कहूँगी की कन्याओं को पूजिये  भी नहीं बल्कि सम्मान भी दीजिये।


Tuesday, September 17, 2013

पितृ दोष

       पितृ ऋण या पितृ दोष , जन्म -कुंडली में एक ऐसा दोष है जोकि  इन्सान की प्रगति में बाधक होता  है।  किसी भी कुंडली को देखने से यह बताया  है कि जातक को किस प्रकार का ऋण दोष है।
 सबसे पहले तो यह जानते हैं कि पितृ दोष क्या है। इसके बहुत सारे ज्योतिषीय कारण  है। इसे  राहू , सूर्य        वृहस्पति की विभिन्न भावों में स्थिति से जाना जा सकता है।  यह भी कई प्रकार के होते हैं जैसे पितृ ऋण , स्त्री ऋण , भगिनी ऋण , भ्राता ऋण , गुरु ऋण , मातृ ऋण आदि। यहाँ मैं सिर्फ सामान्य जन को समझ आये वह भाषा  ही कहूँगी , क्यूंकि हर किसी को कुंडली की समझ नहीं होती।
         पूर्व जन्म में यदि किसी ने किसी को संताप दिया हो जैसे दैहिक , भौतिक  या मानसिक भी , तो वह अगले जन्म में उस जातक की कुंडली में दोष बन कर जीवन में बाधा का कारण  बन जाता है।
लक्षण :--
   १) . परिवार में अशांति , विशेषतया भोजन के  समय कोई बहस या तकरार।
   २ ). कन्या संतान का जन्म और पुत्र का अभाव।
   ३ ). धन की  बरकत न होना।
   ४ ). घर में बीमारी बनी रहना।
   ५ ). निसन्तान रहना।
   ६ ). बच्चों के विवाह में अड़चन।
   ७ ). कोई भी शुभ काम के बाद कोई अशुभ होना। जैसे झगड़ा , चोट लगना , आग लगना , मौत या मौत की खबर आदि कोई भी अशुभ समाचार मिलना।
 यदि उपरोक्त लक्षण  घर में दिखाई देते  जन्म कुंडली दिखा कर उचित उपचार से शांति पाई जा सकती है।
   
    कई बार यह भी देखने में आया है कि जन्म कुंडली में कोई दोष नहीं होता है फिर भी जातक मुश्किलों में घिरा रहता है।  तो इसके लिए उसे अपने परिवार की पृष्ठभूमि  पर विचार करना चाहिए।  क्या उनके परिवार में उनके पूर्वजों का विधिवत श्राद्ध किया जाता है। क्या उसके पूर्वजों को  कहीं से मुफ्त का धन तो नहीं मिला।
       कुछ लोग श्राद्ध करने की बजाय मजबूरों को भोजन करवाना अधिक उचित समझते हैं। उनका तर्क होता है कि ब्राह्मणों की बजाय ये लोग ज्यादा आशीर्वाद देंगे।  यह बात सही है कि किसी भी भूखे को भोजन करवाएंगे तो वह आशीर्वाद देगा ही।  तो आशीर्वाद के लिए जरुर भोजन करवाएं।  लेकिन श्राद्ध कर्म तो एक ब्राह्मण ही कर सकता है और तभी पूर्वजों का आशीर्वाद भी मिलेगा।  यह श्राद्ध करने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह सुपात्र को ही आमंत्रित करे।  मंदिर का पुजारी हो तो अधिक  उचित रहेगा नहीं तो कोई भी कर्मकांडी या जनेउ धारी ब्राह्मण होना चाहिए।
           मुफ्त का धन जिसे  कोई निसन्तान व्यक्ति अपनी जायदाद विरासत में दे जाता है या ससुराल से मिला धन। मैं यहाँ उस धन की बात नहीं कर रही जो किसी स्त्री को उसके विवाह में मिला है। यहाँ मैं कहना चाहूंगी की यह वो धन है जो ससुराल में स्त्री के पिता की मृत्यु के बाद मिला है जबकि उसके भाई ना हो। ऐसी स्थिति में धन का उपभोग तो हो रहा है लेकिन जिसके धन का उपभोग हो रहा है उसके नाम का कोई भी दान -पुन्य नहीं किया जा रहा।
           हमारे समाज में वंश परम्परा चलती है इसी के सिलसिले में पुत्र का जन्म अनिवार्य माना गया है। अगर पुत्र ना हो तो उसकी विरासत पुत्रियों में बाँट दी जाती है। जैसे की समाज का चलन है तो विचार भी यही  हैं कि अगर पुत्र नहीं होगा तो उसका कमाया धन लोग ही खायेंगे। उनका नाम लेने वाला कोई नहीं होगा , आदि -आदि। जब ऐसे इन्सान के धन का उपभोग किया जाये और उसके नाम को भी याद ना किया जाये तो घर में अशांति तो होगी ही। एक अशांत आत्मा किसी को खुश रहने का आशीर्वाद कैसे दे सकती है। ऐसी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध तो करना ही चाहिए।  साथ ही वर्ष में एक बार उसके नाम का कोई दान कर देना चाहिए।  जैसे किसी जरूरत मंद कन्या का विवाह , कहीं पानी की व्यवस्था , या किसी बच्चे की स्कूल की फीस आदि कुछ न कुछ धन राशि जरुर उसके नाम की निकालनी चाहिए।
         जब किसी को परिवार से ही जैसे ताऊ या  चाचा जो कि या  निसन्तान हो या अविवाहित हो।  अथवा असमय अकाल मौत हुई हो और उनका कोई वारिस ना  हो तो ऐसे धन का उपभोग भी  परिवार में अशांति लाता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे धन को उपभोग  वाले की सबसे  छोटी संतान अधिक संताप भोगती है।
            'ऐसे में  फिर क्या किया जाए  ?'
    यहाँ भी जिसका भी धन उपभोग किया जा रहा है उसका विधिवत श्राद्ध और उसके नाम से कुछ धन राशी का दान किया जाये तो शांति  बनी रह सकती है।
        कई बार परिवार के कुल देवता का अनादर भी परिवार में अशांति  का कारण बनती है। ये जो  कुल देवता या पितृ होते हैं , वे हमारे और ईश्वर के मध्य संदेशवाहक का कार्य हैं।  यदि ये प्रसन्न होंगे तो ईश्वर की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।
         कई बार कोई व्यक्ति किसी निसंतान दम्पति द्वारा  गोद लिया जाता है। ऐसे में उसे , वह जिस परिवार में जन्मा है , उस परिवार के कुल देवताओं की पूजा भी करने पड़ती है। क्यूंकि उसमें उस परिवार का (जहाँ जन्म लिया है उसने ) भी ऋण चुकाना होता है। जहाँ वह रहता है वहां के कुल देवता की भी पूजा करनी होती है उसे। तभी उसके जीवन में शांति बनी रहती है।


          दोष हैं तो हल भी है :--
 १ ) .  श्राद्ध कर के ब्राह्मण को वस्त्र -दक्षिणा आदि दीजिये।
२ ).  गाय की सेवा कीजिये।  इसके लिए किसी भी मजबूर व्यक्ति की गाय के लिए साल भर के लिए चारे की व्यवस्था कीजिये।
३ ). चिड़ियों को बाजरी के दाने  डालिए।
४ ). कोवों को रोटी।
५ ). हर अमावस्या को मंदिर में सूखी रसोई और दूध का दान कीजिये।
६ ).  हर मौसम में जो भी नई सब्जी और फल हो उसे पहले अपने पितरों और कुल देवताओं के नाम मंदिर में दान दीजिये।
७ ). हर अमावस्या को गाय को हरा चारा डलवायें।
८ ) . किसी धार्मिक स्थल पर आम और पीपल का वृक्ष लगवा दे।
९ ). तुलसी की सेवा।
१०). अपने पूर्वजों के नाम पर जल की व्यवस्था करनी चाहिए।
पितरो  के निमित्त  दूध देने की विधि :--- एक गिलास कच्चे  दूध में  चीनी मिला कर  छान लीजिये। अब थोडा दूध एक कटोरी में डाल  कर उसे अपनी हथेली से ढक कर विष्णु भगवान को स्मरण करते हुए कहिये , " विष्णु भगवान के लिए। " गिलास के बचे हुए दूध को भी हथेली से ढकते हुए कहिये , " सभी पितरों के लिए। " अब कटोरी के दूध को गिलास के दूध में मिला दीजिये।  यह दूध पुजारी को पीने को दीजिये साथ ही श्रद्धा अनुसार दक्षिणा भी दीजिये।
        सुन्दर काण्ड , गीता और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ भी पितृ दोष में शांति देता है।


ॐ शांति  …।
       
   

Thursday, August 15, 2013

शारीरिक हाव भाव और मानव का स्वभाव और प्रवृत्ति

    अक्सर कहा जाता है कि  सच या झूठ इन्सान के चेहरे से नहीं पहचाना  जा सकता है।  किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं होता कि वह कैसा इन्सान है। लेकिन मशहूर ज्योतिष पवन सिन्हा के अनुसार हर इन्सान को थोड़ा ज्योतिष , थोड़ा आयुर्वेद और थोड़ा मनोविज्ञान तो आना ही चाहिए।
 मेरे विचार में ज्योतिष और आयुर्वेद का तो जब तक पूर्ण  ज्ञान ना हो नहीं आजमाना चाहिए। कभी -कभी अधूरा ज्ञान ' नीम -हकीम ' खतरा -ए -जान ' वाली  जाती है।  जहाँ तक मनोविज्ञान की बात है , यह तो हर इंसान को थोडा बहुत समझना ही चाहिए। क्यूंकि हर इन्सान के हाव -भाव बोलते है। बात तो सिर्फ समझने की है। कभी फुर्सत मिले तो छत पर खड़े हो कर या खिड़की से या फिर घर के बाहर बैठ कर आते -जाते लोगों पर नज़र डालिए। हर इन्सान की चाल - ढाल , लोगों से बात करने का , देखने का तरीका अलग होगा। फोन पर आवाज़ सुन कर और लिखावट से भी इन्सान की पहचान हो सकती हैं।
       यहाँ मैं मेरे इस लेख में सिर्फ शारीरिक हाव -भाव से इन्सान का स्वभाव बताने की कोशिश करुँगी।  लेकिन यहाँ मेरा किसी को आहत करने की मंशा नहीं है।
सबसे पहले नमस्ते करने के अंदाज़ से जानते हैं के  सामने वाले इन्सान की प्रवृति  क्या है।  सबसे पहले किसी से  मिलेंगे तो अभिवादन  ही करेंगे।
1.  अगर सामने वाला /वाली दूर से अपनी कुहनियों को मिलाते हुए हाथ जोड़ कर थोड़े से आगे की  तरफ झुक कर और हाथ भी थोड़े बाहर की और निकलें हों और जबरन मुस्कुराते हुए आपकी तरफ आये तो जान  लीजिये कि वह इन्सान बहुत राजनीति कुशल है।  आप नेताओं को देख सकते हैं ऐसा करते हुए। अपना काम तो आपसे निकाल कर ही छोड़ेगा /छोड़ेगी। आप उसकी  ही चले जायेंगे।
2 . कोई आपसे  आपके सामने खड़े हो कर दोनों हाथ जोड़ कर सीने के पास ले जा कर हलके से झुक कर नमस्ते करता /करती है तो वह इन्सान धार्मिक , थोडा डरपोक लेकिन मन का साफ होता /होती है।
3 . अगर कोई अपने शरीर को कमर से झुका कर लम्बे हाथ जोड़ता ( कुहनियों को भी मिला कर ) तो जान जाइये की सामने वाला खुशामद पसंद है। आपको चने के झाड़ पर चढाता जायेगा आपकी तारीफें कर -कर के लेकिन दिल में उतनी ही बड़ी कैंची रखेगा /रखेगी आपके लिए। पीठ  बुराई करने से भी नहीं चूकेगा।
4 . अब कोई -कोई ना हाथ जोड़ता है ना ही मुहं से नमस्ते बोलता है सिर्फ सर को हल्का सा झुक कर या झटका दे कर नमस्ते जैसे होठ ही हिला  देगा तो क्या वह घमंडी है ! नहीं ऐसा नहीं है।  वह इन्सान दिल का अच्छा लेकिन संकोची होता /होती है।
5.  कई लोग दोनों हाथ जोड़ कर  अपने सर तक ले जा कर नमस्ते करते हैं वे लोग छुपे रुस्तम होते हैं।  यहाँ हम ढोंगी बाबाओं का उदाहरन  दे सकते हैं।
6. कुछ लोग दोनों हथेलियों को धप से बजाते हुए  जोर से बोलते हुए नमस्ते बोलते हैं।  वे अनगढ़ तरीके के होते हैं उनको  नहीं पता होता कि किस से  क्या बात  कहनी है लेकिन मन के साफ होते हैं।

अब नमस्ते तो हो गया। इसके बाद हाथ भी मिलाते हैं कुछ लोग।  सबका अपना अलग अंदाज़ और तरीका होता है। यहाँ भी इन्सान की प्रवृत्ति झलकती है।
1 . जो लोग हाथ मिलाते तो हैं पर छोड़ते  नहीं। कुछ देर तक थाम कर बातें करेंगे। वे लोग भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं। मन की कहना तो चाहते है लेकिन  नहीं पाते। उनको एक दोस्त की तलाश होती है जिसे वह अपना हमराज़  लेकिन संदेह की आदत ऐसा करने नहीं देती।
2 . कई लोग हाथ मिलाकर अपना दूसरा हाथ भी हाथ पर रख देतें है।  ऐसे लोग बहुत आत्मीय किस्म के होते है।  मिलनसार और  दयालु भी होते हैं। चाहे कम बोले लेकिन आपको धोखा कभी नहीं  देंगे।
3 . कई लोग बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलायेंगे और कई देर कर  आपका हाथ हिला डालेंगे। ऐसे लोग बहुत खुशमिजाज होते है। खुद भी खुश रहते है दूसरों को भी खुश ही  देखना चाहते हैं।
4 . कुछ लोग जैसे हाथ को छू भर देंगे बस और आगे बढ़ कर बैठने का उपक्रम करेंगे।  ऐसे लोग दुनियादारी से भरपूर होते है। ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर वाली बात होती ऐसे लोगों में।
5 . कुछ लोग हाथ आपसे मिलायेंगे देखेंगे दूसरी तरफ यानि एक साथ कई लोगों से मुलाक़ात के आकांक्षी होते हैं।  ये लोग विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते यानि राजनीति में पारंगत होते हैं।

 हाथ  मिलाना भी हो गया।  अब आपके पास बैठ कर बात चीत हो रही तो यह भी जानिए की बातों के करने के अंदाज़ से क्या प्रवृति झलकती है।अगर ज्यादा  नहीं जान सकते हैं तो भी  कुछ तो  ऐसी हरकतें होती है जिनसे हम  वाले  बैठे इन्सान के मनोभावों को ताड़ सकते है।
1. जैसे कोई  नज़र मिला कर बात भी कर रहा/रही  हो और झूठ भी बोल रहा हो तो ध्यान दीजिये कि जब वह बात कर रहा /रही हो तो अपना एक पैर जमीन  घिसटते हुए अंदर ( कुर्सी या जहाँ भी वह बैठा /बैठी  हो )की तरफ ले जायेगा।
2.अक्सर हम सोचते  हैं कि  कोई इन्सान  नज़र मिला बात नहीं करता तो  वह झूठा ही होगा।  लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। वह इन्सान संकोची भी  सकता है।
 साथ बैठा हुआ इन्सान  बात करते हुए अगर  दोनों हथेली रगड़ता है तो उसके मन में कुछ और चल रहा होता है।
3. अगर कोई बात करते हुए  चीज़  पेपर वेट या पेन आदि कोई अन्य वस्तु अपने  हाथ में ले कर आपसे बात करता है तो वह आपसे लम्बे समय तक रिश्ता  रखना चाहता है।
4.अब आखिर में एक बात और विशेषकर महिलाओं के  लिए , अगर आप किसी से मिलने जाते हैं और सामने बैठा आपका मित्र  ही अपना हाथ घुटनों से उपर की तरफ लेजाता है तो वह आपसे मित्रता से अधिक शारीरिक सम्पर्क रखने में ज्यादा रूचि रखता है।
यह मेरा अपना बहुत ही बारीक और सामान्य विश्लेष्ण है लेकिन हम अगर जान पायें तो सावधानी रख सकते हैं और इन्सान की पहचान भी कर सकते हैं।
( ॐ शांति )

Saturday, May 25, 2013

महिलाएँ और उनको प्रभावित करते नव -ग्रह

       वैसे तो सौर - मंडल के सभी ग्रह धरती पर सभी प्राणियों पर एक जैसा ही प्रभाव डालते हैं। लेकिन सभी प्राणियों का रहन -सहन और प्रवृत्ति या प्रकृत्ति एक दूसरे से भिन्न होती है इसलिए ग्रहों का प्रभाव कुछ कम -ज्यादा तो होता ही है।
      यहाँ मैं सिर्फ महिलाओं पर सभी ग्रहों का प्रभाव का ही जिक्र करुँगी। क्यूंकि कई बार महिलाएं असामान्य व्यवहार करती है तो उन्हें बहुत झेलना पड़ता है कि उसे किसी ने कुछ सिखा  दिया है या बहाने बना रही है जबकि कई बार ग्रहों की अच्छी ( उग्र )  या बुरी ( कुपित ) स्थिति भी कारण होती है।
    मेरा यह सामान्य सा विश्लेष्ण ही है। जन्म -कुंडली में  विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है।
सूर्य
   सूर्य एक उष्ण और सतोगुणी ग्रह है ,यह आत्मा और पिता का करक हो कर राज योग भी देता है।
 अगर जन्म कुंडली में यह अच्छी स्थिति में हो तो इंसान को स्फूर्तिवान ,प्रभावशाली व्यक्तित्व महत्वाकांक्षी और उदार बनता है।
परन्तु निर्बल सूर्य या दूषित होने पर इंसान चिडचिडा ,क्रोधी ,घमंडी ,आक्रामक और अविश्वसनीय बना देता है।
अगर किसी महिला कि कुंडली में सूर्य अच्छा हो तो वह हमेशा अग्रणी ही रहती है और निष्पक्ष  न्याय में विश्वास करती है चाहे वो शिक्षित हो या नहीं पर अपनी बुद्धिमता का परिचय देती है।
परन्तु जब यही सूर्य उसकी कुंडली में नीच का हो या दूषित हो जाये तो महिला अपने दिल पर एक बोझ सा लिए फिरती है अन्दर से कभी भी खुश नहीं रहती और आस -पास का माहौल भी तनाव पूर्ण बनाये रखती है।जो घटना अभी घटी ही ना हो उसके लिए पहले ही परेशान हो कर दूसरों को भी परेशान किये रहती है।
बात -बात पर शिकायतें ,उलाहने उसकी जुबान पर तो रहते ही है ,धीरे -धीरे दिल पर बोझ लिए वह एक दिन रक्त चाप की मरीज बन जाती है और ना केवल वह बल्कि  उसके साथ रहने वाले भी इस बीमारी के शिकार हो जाते है।
दूषित सूर्य वाली महिलायें अपनी ही मर्ज़ी से दुनिया को चलाने में यकीन रखती है सिर्फ  अपने नजरिये को ही सही मानती है दूसरा चाहे कितना ही सही हो उसे विश्वास नहीं होगा।
    सूर्य का आत्मा से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह अगर दूषित या नीच का हो तो दिल डूबा -डूबा सा रहता है जिस कारण  चेहरा निस्तेज सा होने लगता है।
अगर यह सब किसी महिला में लक्षण हो तो उसे अपनी जन्म कुंडली को एक अच्छे ज्योतिषी को दिखाना चाहिए क्यूँ की महिला ही तो परिवार की धुरी होती  है और वही संतुष्ट नहीं हो तो परिवार में शांति कहाँ से होगी ..!
सूर्य को जल देना ,सुबह उगते हुए सूर्य को कम से कम पंद्रह -मिनिट देखते हुए गायत्री मन्त्र का जाप ,आदित्य -ह्रदय का पाठ और अधिक परेशानी हो तो रविवार कर व्रत भी किया जा सकता है बिना नमक खा कर और कोई व्रत ना रख सके वह उस दिन नमक ना खाए या सूरज ढलने के बाद नमक ना खाएं .
 संतरी रंग (उगते हुए सूरज )का प्रयोग अधिक करें .
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चंद्रमा
    किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। स्त्री की कुंडली में इसका महत्व और भी अधिक है।
चन्द्र राशि से स्त्री का स्वभाव ,प्रकृति ,गुण -अवगुण आदि निर्धारित होते है।
चंद्रमा माता ,मन ,मस्तिष्क ,बुद्धिमता ,स्वभाव ,जननेन्द्रियों ,प्रजनन सम्बन्धी रोगों,गर्भाशय  अंडाशय ,मूत्र -संस्थान छाती और स्तन कारक है .इसके साथ ही स्त्री के मासिक -धर्म ,गर्भाधान एवं प्रजनन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्र भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते है।
           चंद्रमा मन का कारक है ,इसका निर्बल और दूषित होना मन एवं मति को भ्रमित कर किसी भी इंसान को पागल तक बना सकता है।
कुंडली में चंद्रमा की कैसी स्थिति होगी यह किसी भी महिला के आचार -व्यवहार से जाना जा सकता है।
अच्छे चंद्रमा की स्थिति में कोई भी महिला खुश -मिजाज़ होती है। चेहरे पर चंद्रमा की तरह ही उजाला होता है।यहाँ गोरे रंग की बात नहीं की गयी है  क्यूँ कि  चंद्रमा की विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है।
     कुंडली का अच्छा चंद्रमा किसी भी महिला को सुहृदय ,कल्पनाशील और एक सटीक विचार धारा युक्त करता है।
       अच्छा चन्द्र महिला को धार्मिक और जनसेवी भी बनाता है।
    लेकिन किसी महिला की कुंडली मे यही चन्द्र नीच का हो जाये या किसी पापी ग्रह के साथ या अमावस्या का जन्म को या फिर क्षीण हो तो महिला सदैव भ्रमित ही रहेगी . हर पल एक भय सा सताता रहेगा या उसको लगता रहेगा कोई उसका पीछा कर रहा है या कोई भूत -प्रेत का साया उसको परेशान कर रहा है।  कमजोर  या नीच का चन्द्र किसी भी महिला को भीड़ भरे स्थानों से दूर रहने को उकसाएगा और एकांतवासी कर देता है धीरे -धीरे।
      महिला को  एक चिंता सी सताती रहती है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है। बात -बात पर रोना या हिस्टीरिया जैसी बीमारी से भी ग्रसित हो सकती है। बहुत चुप रहने लगती या बहुत ज्यादा बोलना शुरू कर देती है।ऐसे में तो ना केवल घर -परिवार और आस पास का माहौल ख़राब होता ही है निस्संदेह रूप से क्यूँ कि वह हर किसी को संदेह कि नज़रों से देखती है ,
    बार -बार हाथ धोना ,अपने बिस्तर पर किसी को हाथ नहीं लगाने  देना और कई -कई देर तक नहाना भी कमजोर चन्द्र कि निशानी है।
ऐसे में जन्म -कुंडली का अच्छे से विश्लेष्ण करवाकर उपाय करवाना चाहिए।
अगर किसी महिला के पास कुंडली नहीं हो तो ये सामान्य उपाय किये जा सकते है ,जैसे शिव आराधना ,अच्छा मधुर संगीत सुने,कमरे में अँधेरा ना रखे ,हलके रंगों का प्रयोग करें।
पानी में केवड़े का एसेंस डाल कर पियें .सोमवार को एक गिलास ढूध और एक मुट्ठी चावल का दान मंदिर में दे ,और घर में बड़ी उम्र की महिलाओं के रोज़ चरण -स्पर्श करते हुए उनका आशीर्वाद अवश्य लें।
   अगर हो सके चांदी के गिलास में पानी और ढूध पियें, छोटी वाली ऊँगली में चांदी का गोल छल्ला पहने (पर यह तब करना है जब कुंडली दिखाई गयी हो और उसमे बताया हो ).
छोटे बच्चों के साथ बैठने से भी चंदमा अनुकूल होता है।
और सबसे बड़ी बात है दृढ -निश्चय , यह ही किसी इंसान को भ्रम कि स्थिति से बाहर निकल सकती है
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 मंगल
   ग्रहों का सेनापति मंगल ,अग्नितत्व प्रधान तेजस ग्रह है।इसका रंग लाल  और ये रक्त -संबंधो का प्रतिनिधित्व करता है। जिस किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल शुभ और मजबूत स्थिति में होता है उसे वह प्रबल राज योग प्रदान करता है। शुभ मंगल से  स्त्री अनुशासित , न्यायप्रिय ,समाज  में प्रिय और सम्मानित होती है।
जब मंगल ग्रह का पापी और क्रूर ग्रहों का साथ हो जाता है तो स्त्री को मान -मर्यादा भूलने वाली ,क्रूर और ह्रदय हीन भी बना देता है।
     क्यूँ कि मंगल रक्त और स्वभाव में उत्तेजना ,उग्रता और आक्रमकता लाता है इसीलिए जन्म -कुंडली में  विवाह से संबंधित भावों --जैसे द्वादश ,लग्न ,द्वितीय ,चतुर्थ ,सप्तम व अष्टम भाव में मंगल कि स्थिति को विवाह और दांपत्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है। ऐसी कन्या मांगलिक कहलाती है।
      मेरे विचार में मांगलिक होना कोई भयावह  बात नहीं है क्यूँ की अच्छे औरशुभ मंगल से कोई भी स्त्री की सोच ऊँची और  वह उच्च पद तक पहुँचती  है और जहाँ तक विवाह का सवाल है वह जन्म कुंडली मिला कर ही करना चाहिए .
        लेकिन जिन स्त्रियों  की जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो तो वह आलसी और बुझदिल होती है थोड़ी सी डरपोक  भी होती है .
मन ही मन सोचती है पर प्रकट रूप से कह नहीं पाती और मानसिक अवसाद में घिरती चली जाती है।कमजोर मंगल वाली स्त्रियाँ हाथ में लाल रंग का धागा बांध कर रखे और भोजन करने के बाद थोडा सा गुड जरुर खा लें। ताम्बे के गिलास में पानी पियें और अनामिका में ताम्बे का छल्ला पहन ले और   एक अच्छे ज्योतिष को दिखा कर उसकी सलाह पर अगर जरुरी हो तो मूंगा धारण करें।
    जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल उग्र स्थिति में होता है उनको लाल रंग कम धारण करना चाहिए और मसूर की दाल का दान करना चाहिए। रक्त -सम्बन्धियों का सम्मान करना चाहिए जैसे बुआ ,मौसी बहन ,भाई और अगर शादी शुदा है तो पति के रक्त सम्बन्धियों का भी सम्मान करें .
हनुमान जी की शरण में रहना कैसे भी मंगल दोष को शांत रखता है।
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बुध 
     बुध ग्रह  एक शुभ और रजोगुणी प्रवृत्ति का है।यह किसी भी स्त्री में बुद्धि ,निपुणता ,वाणी .वाक्शक्ति ,व्यापार ,विद्या में बुद्धि का उपयोग तथा मातुल पक्ष का नैसर्गिक करक है। यह द्विस्वभाव ,अस्थिर और नपुंसक ग्रह होने के साथ - साथ शुभ होते हुए भी जिस ग्रह  के साथ स्थित होता है ,उसी प्रकार के फल देने लगता है। अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ ,अशुभ ग्रह  के अशुभ प्रभाव देता है।
        अगर यह पाप ग्रहों के  दुष्प्रभाव में हो तो स्त्री कटु भाषी , अपनी बुद्धि से काम न लेने वाली यानि दूसरों की बातों में आने वाली या हम कह सकते हैं के कानो की कच्ची ...!,  जो घटना घटित भी ना हुई उसके लिए पहले से ही चिंता करने वाली और चर्मरोगों से ग्रसित हो जाती है।
क्यूँ की बुध बुद्धि का परिचायक  भी है अगर यह दूषित चंद्रमा के प्रभाव में आ जाता है तो स्त्री को आत्मघाती कदम की तरफ भी ले जा सकता है।
        यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहती  हूँ ,यहाँ  मेरा किसी भी महिला पर दोषारोपण करने का प्रयास नहीं है बल्कि मैंने बहुत सी महिलाओं में यह प्रवृत्ति देखी और उनको घुटते देखा है। वे कहती है कि  उनके मन में कुछ नहीं होता फिर भी वो बोले बिना नहीं रहती और फिर बोलते ही विवाद हो जाता है। तो यहाँ दूषित बुध का ही परिणाम होता है।
       यह सूर्य के साथ हो कर भी अस्त नहीं होता। और बुध -आदित्य योग का निर्माण करता है।
जिस किसी भी स्त्री का बुध शुभ प्रभाव में होता है वे अपनी वाणी के द्वारा जीवन की सभी उच्चाईयों को छूती है ,अत्यंत बुद्धिमान ,विद्वान् और चतुर और एक अच्छी  सलाहकार साबित होती है।व्यापार में भी अग्रणी तथा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सम्स्याओं का हल निकल लेती है।
         यह एक सामान्य विश्लेष्ण है ,बुध ग्रह  के  शुभ- अशुभ प्रभाव का। जन्म-कुंडली के अलग- अलग भावों और अलग - अलग ग्रहों के साथ होने पर इसका प्रभाव कम या ज्यादा भी हो सकता है। अगर जन्म कुंडली है तो उसका एक अच्छे  ज्योतिष से विश्लेष्ण करवा कर उपाय करवा लेना चाहिए। अगर जरुरी हो तो 'पन्ना' रत्न  छोटी वाली ऊँगली में पहना जा सकता है। गणेश जी और दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए।
हरे मूंग ( साबुत ), हरी  पत्तेदार सब्जी  का सेवन और दान ,हरे वस्त्र को धारण और दान देना भी उपुयक्त रहेगा। तांबे के गिलास में जल पीना चाहिए। अगर कुंडली ना हो और मानसिक अवसाद ज्यादा रहता हो तो सफ़ेद और हरे रंग के धागे को आपस में मिला कर अपनी कलाई में बाँध लेना चाहिए।
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 वृहस्पति
         वृहस्पति  एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है। क्यूँ कि  यह आकर में सबसे बड़ा है , अन्य ग्रहों से , इसलिए इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और वृहस्पति देवताओं के गुरु भी थे।
     वृहस्पति बुद्धि ,विद्वता ,ज्ञान ,सदगुणों ,सत्यता ,सच्चरित्रता ,नैतिकता ,श्रद्धा ,समृद्धि ,सम्मान .दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है। किसी भी स्त्री के लिए  यह पति ,दाम्पत्य ,पुत्र और घर -गृहस्थी का कारक होता है।
       अशुभ  ग्रहों के साथ या दूषित वृहस्पति स्त्री को स्वार्थी ,  लोभी और क्रूर विचार धारा  की बना देता है।दाम्पत्य-जीवन भी दुखी होता है और पुत्र-संतान की भी कमी होती है। पेट और आँतों से सम्बन्धित रोग भी पीड़ा दे सकते है।
    जन्म- कुंडली में शुभ वृहस्पति किसी भी स्त्री को धार्मिक ,न्याय प्रिय और ज्ञान वान  पति -प्रिय और उत्तम संतान वती बनाता  है। स्त्री विद्वान होने के साथ -साथ  बेहद विनम्र भी होती है।
मैंने बहुत बार यह भी देखा है, यह कुंडली में शुभ होते हुए भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने सामने ,किसी और को तुच्छ समझती है क्यूँ की वृहस्पति के कारन ज्ञान की सीमा ही नहीं होती ,वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।
     अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने  भी लग जाती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्यूँ की उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है वह तो आपकी बात ही तो रख रही होती है। और यही अहंकार उसमे  में मोटापे का कारक  भी बन जाता है।  वैसे तो अन्य  ग्रहों के कारण  भी मोटापा आता है पर वृहस्पति जन्य मोटापा अलग से पहचान आता है यह शरीर में थुल थूला पन  अधिक लाता है।क्यूँ की वृहस्पति शरीर में मेद  कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है।
     अगर ऐसा किसी स्त्री के साथ हो तो  वह सबसे पहले अपनी जन्म -कुंडली का किसी अच्छे  ज्योतिषी से विश्लेष्ण करवा लें।
      कमजोर वृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है पर किसी ज्योतिषी की राय ले कर ही। गुरुवार का व्रत रखा जा सकता है। सोने का धारण,पीले रंग का धारण औरपीले भोजन  सेवन किया जा सकता है। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी वृहस्पति अनुकूल हो सकता है।
       उग्र वृहस्पति को शांत करने   के  लिए वृहस्पति वार का व्रत करना , पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए ,केले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और विष्णु -भगवान् को केले अर्पण करना चाहिए। और छोटे बच्चों ,मंदिर में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए।
    अगर दाम्पत्य जीवन कष्मय हो तो हर वृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे  की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देशी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाये।
कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह  कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही गुरुवार को चपाती पर गुड की डली  रख कर गाय को खिलाना चाहिए ।
और सबसे बड़ी बात यह के झूठ  से जितना परहेज किया जाय ,बुजुर्गों और अपने गुरु ,शिक्षकों के प्रति जितना  सम्मान किया जायेगा उतना ही वृहस्पति अनुकूल होता जायेगा।
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शुक्र
   शुक्र एक शुभ एवं रजोगुणी ग्रह है।यह विवाह , वैवाहिक जीवन , प्यार , रोमांस  , जीवन साथी तथा यौन सम्बन्धों का नैसर्गिक कारक है। यह सौंदर्य , जीवन का सुख , वाहन  , सुगंध और सौन्दर्य प्रसाधन का कारक भी है।
    किसी भी स्त्री की कुंडली में जैसे वृहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है , वैसे ही शुक्र भी दाम्पत्य जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  कुंडली का अच्छा शुक्र चेहरा देखने से ही प्रतीत हो जाता है। यह स्त्री के चेहरे को आकर्षण का केंद्र बनाता  है। यहाँ यह जरुरी नहीं की स्त्री का रंग गोरा है या सांवला। सुन्दर -नेत्र और सुंदर केशराशि से पहचाना जा सकता है  स्त्री का शुक्र शुभ ग्रहों के सानिध्य में है। वह सोंदर्य -प्रिय भी होती है।
  अच्छे  शुक्र के प्रभाव से स्त्री को हर सुख सुविधा प्राप्त होती है।  वाहन ,  घर , ज्वेलरी , वस्त्र   सभी उच्च कोटि के। किसी भी वर्ग की औरत हो ,  उच्च , मध्यम या निम्न उसे अच्छा शुक्र सभी वैभव प्रदान करता ही है। यहाँ यह कहना भी जरुरी है अगर आय के साधन सीमित भी हो तो भी वह ऐशो आराम से ही रहती है।
   अच्छा शुक्र किसी भी स्त्री को गायन , अभिनय ,काव्य -लेखन की और प्रेरित करता है। चन्द्र के साथ शुक्र हो तो स्त्री भावुक होती है। और अगर साथ में बुध का साथ भी मिल जाये तो स्त्री लेखन के क्षेत्र में पारंगत होती है और साथ ही में वाक् पटु भी , बातों में उससे शायद ही कोई जीत पाता हो।
  अच्छा शुक्र स्त्री में मोटापा भी देता है।जहाँ वृहस्पति स्त्री को थुलथुला मोटापा दे कर अनाकर्षक बनता है वही शुक्र  से आने वाला मोटापा स्त्री को और भी सुन्दर दिखाता है।यहाँ हम शुभा मुदगल और किरन खेर , फरीदा जलाल का उदाहरण  दे सकते हैं।
    कुंडली का बुरा शुक्र या पापी ग्रहों का सानिध्य या कुंडली के दूषित भावों का साथ स्त्री में चारित्रिक दोष भी उत्पन्न करवा  सकता है।यह विलम्ब से विवाह , कष्ट प्रद दाम्पत्य जीवन , बहु विवाह , तलाक की और  भी इशारा करता है। अगर ऐसा हो तो स्त्री को हीरा पहनने से परहेज़ करना चाहिए।
     कमज़ोर  शुक्र स्त्री में मधुमेह , थाइराईड , यौन रोग , अवसाद और वैभव हीनता लाता  है।
     शुक्र को अनुकूल करने के लिए शुक्रवार का व्रत और माँ लक्ष्मी जी की आराधना करनी चाहिए। चावल ,  दही  , कपूर , सफ़ेद -वस्त्र , सफ़ेद पुष्प का दान देना अनुकूल रहता है।  छोटी कन्याओं को चावल की इलाइची डाल कर  खीर भी खिलानी चाहिए।
   कनक - धारा , श्री सूक्त , लक्ष्मी स्त्रोत , लक्ष्मी चालीसा  का पाठ और लक्ष्मी मन्त्रों का जाप भी सुकर को बलवान करता है।माँ लक्ष्मी को गुलाब का इत्र  अर्पण करना विशेष फलदायी है। हीरा भी धारण किया जा सकता है पर किसी अच्छे  ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेष्ण करवाने के बाद ही।
     जन्म -कुंडली के अलग -अलग भावों और ग्रहों के साथ शुक्र के प्रभाव में अंतर आ सकता है।यह मेरा एक सामान्य विश्लेष्ण ही  है।
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शनि
   शनि ग्रह तमोगुणी और पाप प्रवृत्ति का है। यह सबसे धीमा चलने वाला , शीतल , निस्तेज  , शुष्क  , उदास और शिथिल  ग्रह है। इसे वृद्ध ग्रह माना गया है। इसलिए इसे दीर्घायु प्रदायक या आयुष्कारक ग्रह कहा गया है।
    यह कुंडली में कान , दांत , अस्थियों , स्नायु  , चर्म ,शरीर में लोह तत्व व वायु तत्व , आयु , जीवन , मृत्यु  , जीवन शक्ति , उदारता  , विपत्ति  , भूमिगत साधनों और अंग्रेजी शिक्षा का कारक  है।
किसी भी स्त्री की कुंडली में अच्छा शनि उसे उदार , लोकप्रिय बनता है और तकनीकी ज्ञान में अग्रणी रखता है। वह हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर प्रतिनिधित्व करती है। राजनीति में भी उच्च पद प्राप्त करती है।
   दूषित शनि विवाह में विलम्ब कारक भी है। और निम्न स्तर का जीवन साथी की प्राप्ति की ओर भी संकेत करता है।
     दूषित शनि स्त्री को ईर्ष्यालु और हिंसक भी बना देता है।यह स्त्री में निराशा ,उदासीनता और नीरसता का समावेश कर उसके दाम्पत्य जीवन को कष्टमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। और धीरे - धीरे  स्त्री अवसाद की तरफ बढ़ने लग  जाती है।
      स्त्रियों में कमर -दर्द , घुटनों का दर्द या किसी भी तरह का मांसपेशियों का दर्द दूषित शनि  का ही परिणाम है। चंदमा के साथ शनि स्त्री को पागलपन का रोग तक दे सकता है। इसके लिए स्त्री को काले रंग का परहेज़ और अधिक से अधिक हलके और श्वेत रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
        शनि  को अनुकूल बनाने के लिए स्त्री को ना केवल  अपने परिवार के ही बल्कि सभी वृद्ध जनो का सम्मान करना चाहिए। अपने  अधीनस्थ कर्मचारियों और सेवकों के प्रति स्नेह  और उनके हक़ और हितों की रक्षा भी करें। देश के प्रति सम्मान की भावना रखे। शनि ईमानदारी  और सच्चाई से प्रसन्न रहता है।
     क्यूंकि शनि को न्यायाधीश भी माना  गया है तो यह अपनी दशा -अंतर दशा में अपना सुफल या कुफल जरुर देता है कर्मो के अनुसार।
     शनि अगर प्रतिकूल फल दे रहा हो तो हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए। मंगलवार को चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे करना चाहिए। शनि चालिसा , हनुमान चालीसा का पाठ विशेष लाभ देगा। अगर शनि के कारण हृदय रोग परेशान  करता हो तो सूर्य को जल और आदित्य -ह्रदय स्त्रोत का पाठ लाभ देगा और अगर मानसिक रोग के साथ सर्वाइकल का दर्द हो तो शिव आराधना विशेष लाभ देगी। काले और गहरे नीले रंग का परित्याग शनि को अनुकूल बना सकता है।
नीलम का धारण भी शनि को अनुकूल बनता है पर किसी अच्छे ज्योतिषी से पूछ कर ही।
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राहु
    राहु एक तमोगुणी मलेच्छ और छाया  ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव शनि की भांति  ही होता है।
यह तीक्ष्ण  बुद्धि , वाक्पटुता , आत्मकेंद्रिता ,स्वार्थ , विघटन और अलगाव , रहस्य  मति भ्रम , आलस्य  छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं , जुआ  और  झूठ का कारक  है।
  राहू से प्रभावित स्त्री एक अच्छी जासूस या वकील , अच्छी  राजनीतीज्ञ  हो सकती है। वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेती है। विदेश यात्राएं बहुत करती है।
   कुंडली में राहू जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है। अगर वृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो स्त्री को ज्योतिष में रूचि  होगी। शनि के प्रभाव में तो तांत्रिक - विद्या में निपुण होगी।चंद्रमा के साथ हो तो वह कई सारे  वहमो में उलझी रहेगी , जैसे उसे कुछ दिखाई  दे रहा है ( भूत-प्रेत आदि )...., या भयभीत रहती है। अगर वह ऐसा कहती है तो गलत नहीं कह रही होती  क्यूंकि अगर स्त्री के लग्न में राहू हो या राहू की दशा -अन्तर्दशा में ऐसी भ्रम की स्थिति हो जाया करती है।
जब हमारे देश की कुंडली में राहू की दशा थी तब देश में भी  भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी थी जैसे गणेश जी का दूध पीना , समुन्दर का पानी मीठा हो जाना ....आदि -आदि।
     ऐसे में स्त्री पर आक्षेप लगाने से बेहतर होगा के उसकी कुंडली दिखा कर सही उपचार किया जाय।अगर कुंडली ना हो तो शिव जी शरण में जाना चाहिए। मोती भी धारण किया जा सकता है पर सही ज्योतिषी की राय लेकर ही।
    राहु से प्रभावित स्त्री की वाणी में कटुता आ जाती है।वह थोड़ी घमंडी  भी हो जाया करती है।। भ्रमित  रहने के कारण वह कई बार सही गलत की पहचान भी नहीं कर पाती। जिसके फलस्वरूप उसका दाम्पत्य जीवन भी नष्ट होते देखा गया है। राहु  के दूषित प्रभाव के कारण स्त्री में चर्म  -रोग ,मति -भ्रम , अवसाद रोग से ग्रस्त  हो सकती है।
      राहु को शांत करने के लिए दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए। खुल कर हँसना चाहिए। मलिन और फटे वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। गहरे नीले रंग से परहेज़ करना चाहिए। काले रंग की गाय की सेवा करनी चाहिए।मधुर संगीत सुनना चाहिए।रामरक्षा स्त्रोत का पाठ भी लाभ दायक रहेगा।
     इसकी शांति के लिए गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है लेकिन किसी अच्छे ज्योतिषी की राय ले कर ही।
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केतु
केतु ग्रह उष्ण ,तमोगुणी पाप ग्रह है।केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है किसी स्वग्रही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चौगुना कर देता है।यह नाना , ज्वर , घाव , दर्द , भूत -प्रेत , आंतो के रोग , बहरापन और हकलाने का कारक है। यह मोक्ष का कारक भी माना  जाता है।
   केतु मंगल की भांति कार्य करता है। यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दुगुना हो जाता है।यदि केतु शनि के साथ हो तो यहाँ शनि-मंगल की युति के सामान ही मानी जाती है।
      राहू की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है।जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है।
   केतु से प्रभावित महिला कुछ भ्रमित  सी रहती है। शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्यूँ कि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहू इस देह का कटा सर होता है।
        अच्छा केतु महिला को उच्च पद , समाज में सम्मानित , तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है।                        बुरा केतु महिला की बुद्धि भ्रमित कर के उसे  सही समय  निर्णय लेने में बाधित करता है। चर्म रोग से ग्रसित कर देता है। काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है। वाणी भी कटु कर देता है।
       केतु का प्रभाव अलग - अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण इसका प्रभाव ज्यादा या कम हो सकता है। इसके लिए किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण करवाकर ही उपाय करवाना चाहिए।
     केतु के लिए लहसुनिया नग उपयुक्त माना  गया है।मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की आराधना विशेष फलदायी होती है।गणेश चालीसा का पाठ भी विशेष फलदायी हो सकता है।
      चिड़ियों को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे-चितकबरे वस्त्र का दान तथा इन्हीं रंगों के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा।

--© उपासना सियाग
अबोहर 
8264901089







महिलाएँ और केतु ग्रह

केतु ग्रह उष्ण ,तमोगुणी पाप ग्रह है।केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है किसी स्वग्रही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चौगुना कर देता है।यह नाना , ज्वर , घाव , दर्द , भूत -प्रेत , आंतो के रोग , बहरापन और हकलाने का कारक है। यह मोक्ष का कारक भी माना  जाता है।
   केतु मंगल की भांति कार्य करता है। यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दुगुना हो जाता है।यदि केतु शनि के साथ हो तो यहाँ शनि-मंगल की युति के सामान ही मानी जाती है।
      राहू की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है।जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है।
   केतु से प्रभावित महिला कुछ भ्रमित  सी रहती है। शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्यूँ कि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहू इस देह का कटा सर होता है।
     अच्छा केतु महिला को उच्च पद , समाज में सम्मानित , तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है।                        बुरा केतु महिला की बुद्धि भ्रमित कर के उसे  सही समय  निर्णय लेने में बाधित करता है। चर्म रोग से ग्रसित कर देता है। काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है। वाणी भी कटु कर देता है।
       केतु का प्रभाव अलग - अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण इसका प्रभाव ज्यादा या कम हो सकता है। इसके लिए किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण करवाकर ही उपाय करवाना चाहिए।
     केतु के लिए लहसुनिया नग उपयुक्त माना  गया है।मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की आराधना विशेष फलदायी होती है।
      चिड़ियों को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे-चितकबरे वस्त्र का दान तथा इन्हीं रंगों के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा।

ॐ शांति ...
   

Wednesday, January 23, 2013

जन्म-कुंडली के ग्रह और उनका परिवार के लोगों पर प्रभाव

    जन्म-कुंडली के ग्रह और उनका परिवार के लोगों पर प्रभाव। …
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   ज्योतिष एक विज्ञान है यह सभी लोग जानते हैं। जो लोग ज्योतिष को नहीं मानते वे अक्सर कहते हैं कि ज्योतिष गलत है या कुंडलियों में  कुछ नहीं रखा। यह सभी का अपना-अपना विश्वास है कि  कोई क्या सोचता है।जन्म-कुंडली कभी गलत नहीं हो सकती  क्यूंकि यह तो खगोल में घटित होने वाली घटना होती है जो झुठलाई नहीं जा सकती। हां ...!  उसको पढने वाले की विद्या और ज्ञान में कमी हो सकती है।
       लेकिन कई बार जो लोग ज्योतिष में विश्वास रखते हैं वे भी यही कह देते हैं , उनकी जन्म-कुंडली में तो ऐसा लिखा हुआ था और वैसी कोई भी घटना घटित हुई  ही नहीं। तो क्या ज्योतिषी गलत है जिसने कुंडली बना कर उसका विश्लेष्ण  किया था ?मेरे विचार में ऐसा नहीं है।
          एक घर में रहने वाले सभी लोगों के ग्रह आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।परिवार में जिसके भी ग्रह अधिक प्रभावशाली हो कर कुंडली में स्थापित होते हैं उसके ग्रहों का प्रभाव परिवार के दूसरे  लोगों  पर भी अवश्य पड़ता है।
     किसी बच्चे के जन्म या घर में नई बहू के आने से घर की परिस्थितियों में बदलाव आता है , चाहे अच्छा या बुरा कैसा भी , तो कहा जाता है इसके आने से हमारे घर में यह बरकत हुयी या नुकसान हुआ। यह भी ग्रहों का प्रभाव ही होता है जो कि  घर में जुड़ने वाले सदस्यों पर असर डालता है।
इसका प्रमाण मैं मेरे ही जीवन की सच्ची घटना से दे सकती हूँ।
       बात तब की है जब मैं चौदह वर्ष की थी , तभी मुझे हस्त - रेखा देखने का शौक लगा था। मुझे मेरे ननिहाल में कबाड़ में पड़ी एक हस्त  रेखा से सबंधित किताब मिली और उसे मैंने झाड -पौंछ कर पढने के लिए रख लिया।स्कूल की पढाई के बाद जब भी समय मिलता उसे मैं पढ़ती रहती। यह भी ग्रहों का ही खेल था कि  मुझे समझ भी जल्दी आने लगा।
      मेरा ध्यान एक दिन मेरी माँ के हाथो पर गया तो मैं चौंक पड़ी और मन ही मन सहम भी गयी।माँ की तो उम्र की रेखा ही बहुत छोटी थी।अब हम क्या करेंगे और मुझे तो मेरी माँ से लगाव ही बहुत है। बताई भी तो क्या बताती। रोज़ सोचती और उदास हो जाती फिर घर में जो मंदिर था उसमे शिव जी से माँ की उम्र बढ़ाने  की प्रार्थना भी करती। रही सही कसर एक बाबा जी ने भी पूरी कर दी जो की पड़ोस के घर में नियमित आया -जाया करते थे।कहा जाता था कि  उनकी उम्र 105 साल थी।उन्होंने माँ का हाथ देख कर कहा कि उनकी उम्र मात्र 35 वर्ष ही है। उस रात घर में कोई सोया नहीं , सभी उदास हो गए। आखिरकार माँ ने कहा ," अरे उन बाबा जी को खुद का भी पता है क्या वो कितना जियेंगे ...!" और अगर मेरी अभी उम्र कम भी है तो क्या हुआ मेरे पास अभी 7 साल है , इन 7 सात  में पता नहीं क्या होगा , जो होना होगा वह तो होगा ही ,यह ईश्वर ही जानता है।"
बात पुरानी  होने के साथ हम सब भूलने लगे। उन बाबा जी भी क्या हुआ पता नहीं।
1994  में हमारे एक परिचित जो की अच्छे ज्योतिष भी है। तब तक मुझे जन्म-कुंडली का ज्ञान नहीं था।सभी की कुंडली दिखाई और अचानक माँ पूछ बैठी कि उनकी तो उम्र कम थी यानि 35 वर्ष ही तो वह अब तक कैसे जीवित है। माँ ने अपना हाथ दिखाया तो पाया की उनकी उम्र की रेखा तो बढ़ी हुयी है।इस पर उन परिचित ज्योतिषी ने मेरे पिता जी की कुंडली देखी और माँ को कहा , "आपके पति की कुंडली में पत्नी-वियोग नहीं है।तभी आपकी उम्र को बढ़ना पड़ा।"
तो यह था ग्रहों के असर का प्रत्यक्ष प्रमाण। इसीलिए जन्म-कुंडली में लिखी हुई  घटनाएँ नहीं भी घटित होती। इसकेलिए हम ज्योतिष को जिम्मेवार नहीं ठहरा सकते।जन्म -कुंडली का समय समय पर विश्लेष्ण करवाते भी रहना चाहिए।
 ॐ शांति .......